मंगलवार, 25 मई 2010

वॉल-ई……खटर-पटर


अरे यार, ये पिक्सार तो कमाल पर कमाल किये जा रहा है. अब मैंने देखी है वॉल-ई. माफ़ करिए, देखी तो काफ़ी पहले थी, परीक्षा के कारण उलझा था. हाँ तो भाई, यहाँ इस बार फिर से पिक्सार एनीमेशन स्टूडियो ने कुछ बढ़िया किया है. इन्होने उसी पुराने पीट डॉक्टर के साथ मिलकर फिल्म बनायीं है वॉल-ई. यहाँ रोबोट का मानवीय व्यवहार देखने को मिलता है और भरपूर मिलता है.
 

बयानबाज़ी तो यह है कि बाई ऐन लार्ज, जो कि एक मल्टीनेशनल कम्पनी है, ने पृथ्वी पर कूड़े का अम्बार सा खड़ा कर दिया जिसके विरोध में कई प्राकृतिक शक्तियां खड़ी हो गयी हैं और उन्होंने मज़बूर कर दिया है बची-खुची मानव प्रजाति को धरती छोड़ने के लिए. अपने बचाव में भी मनुष्य आराम-तलब होने के लिए बाई ऐन लार्ज के बनाए ऐक्सियम नामक यान में सवार हो निकल लेता है सुदूर अन्तरिक्ष में और अपनी हड्डियों का द्रव्यमान खोता रहता है साथ में वसा को अधिकाधिक मात्रा और आनुवांशिक रोग के तौर पर संचित करता जाता है.

धरती पर मोर्चा सम्हाले है अपना हीरो वॉल-ई, जो उसी कूड़ा फैलाने वाली कम्पनी का कूड़ा समेटने वाला रोबोट है, सौर ऊर्जा से चलता है और खाली समय में गाने सुनता है और धूल भरी आँधियों से बचने के लिए अपने घर में अपने दोस्त तिलचट्टे के साथ घुस जाता है. ये तिलचट्टा भी अजीब बेहया है, कुचल दो, दबा दो, रगड़ दो.. फिर भी पिन्न से खड़ा हो जाता है.
 
बहरहाल, ऐक्सियम बिना किसी ख़ास रूचि के अपने जीवन तलाशने वाली रोबोट इवा को भेजता है जो वॉल-ई की तरफ़ से होने वाले इकतरफ़ा प्यार को समझ नहीं पाती है और उसी के द्वारा खोजे जीवन के अंकुर एक पौधे को लेकर डब्बा हो जाती है. फिर वॉल-ई शुरू करता है प्यार को पाने के लिए धरती से आकाश तक का सफ़र (बिलकुल अपनी हिन्दी फ़िल्मों की तरह) और पहुँच जाता है आराम-तलबी के गढ़ ऐक्सियम में.

 
काफ़ी जद्दोजहद और एक काबिज़ तंत्र से लड़ाई के बाद वो मरणासन्न हो जाता है लेकिन प्रेम के पुराने समीकरण के अनुसार वो इवा को पा लेने में सफल हो जाता है. रोबोटों की एक विद्रोही पल्टन के सरदार के तौर पर वॉल-ई और इवा मोस्ट वांटेड अपराधियों की श्रेणी में आ जाते हैं और प्रेम गहराता जाता है. इसी दौरान मेरा पसंदीदा दृश्य आता है जब प्रेमी युगल निर्वात अन्तरिक्ष में दुहरी रेखायें बनाते हुए नृत्य करते हैं…. ऐक्सियम की जनता नहीं जानती है कि आकाश कैसा है और पानी सूखा है या गीला… दरअसल ये उनकी गलती नहीं है, गलती है तो उस मनहूस ऑटो पायलट की और इसे बनाने वाले की जिसने ज्ञान का बोध ख़त्म कर दिया है…प्रेम, संघर्ष और पर्यावरण इस फ़िल्म के मूल विषय हैं.


कप्तान की ऑटो पायलट से लड़ाई एक नाटकीय रोमांच तो पैदा करता है, लेकिन अच्छा है.

रोबोटिक कहानियों पर टर्मिनेटर और ट्रांसफॉर्मर सरीखी कई फ़िल्में बनीं, लेकिन वे गोली, बन्दूक और तकनीक परोसने में ही सीमित रह गयी हैं.

फ़िल्म से जुड़े कई मिश्रित विचार भी मेरे सामने आये और मैं उनसे सहमत नहीं हूँ, क्योंकि मैंने इसे एक अलग पैमाने पर रख कर देखा है. ऐक्सियम/ बाई एन लार्ज को अमेरिका और तमाम विद्रोहियों को ____ माना है, आप ख़ुद ही समझ लें.
 
फ़िल्म के कुछ स्नैप्स भी चपका रहा हूँ, फ़िल्म देखिएगा ज़रूर, अच्छा लगेगा.

2 टिप्पणियाँ:

pankaj mishra ने कहा…

अच्छी बात साथ ही अच्छा ब्लॉग भी। बधाई।

sameer ने कहा…

देखेंगे!