दुनिया की सबसे ख़राब चीज़ है स्वतंत्रता. किसी भी किस्म की स्वतंत्रता रचनात्मकता के लिए ख़राब ही है. आपको पता है, मैनें स्पेन के जेल में दो महीन गुज़ारे और वे दो महीने मेरे जीवन के सबसे मज़ेदार और खुशनुमा दो महीने थे. जेल के दिनों से पहले मैं परेशान और दुखी रहता था. मुझे नहीं पता रहता था कि मुझे चित्र बनाना चाहिए? या कोई कविता रचनी चाहिए? या कोई सिनेमा देखने या थिएटर जाना चाहिए? या किसी लड़की का पीछा करना चाहिए या लड़कों के साथ खेलना चाहिए. लोगों ने मुझे जेल में डाला और इसी के साथ मेरी ज़िंदगी अभूतपूर्व रूप से बदल गई. है न ज़बरदस्त बदलाव!! - सल्वाडोर डाली
1976 में पोलैंड के स्केचिन शहर में पावेल कुचिंस्की का जन्म हुआ. 2001 में पोज़ान की फाइन आर्ट्स अकादमी से स्नातक होने के बाद पावेल ने अपने आपको बागी बना दिया और दिन-रात दुनिया की सारी ताक़तों और कुरीतियों के खिलाफ़ अपनी आवाज़ को रंगों में दर्ज़ करने लगे. वैश्विक बदहवासी का मज़ाक बनाती अपनी कला का पावेल लगभग बीस देशों में लोहा मनवा चुके हैं और उन देशों की फ़ेहरिस्त में विश्व की स्व-घोषित महाशक्ति भी शामिल है, जिसके खिलाफ़ पावेल की आवाज़ कुछ ज़्यादा ही बुलंद है.
ऊपर डाली के जिस कथन का उद्धरण है, वह मुझे गाहे-बगाहे कुचिंस्की से जुड़ा कथन लगता है. ये कहना शायद गलत न होगा कि कुचिंस्की के चित्र कविता हैं, जनगीत हैं, वे तमाम युद्धों, यातनाओं और युद्ध रुपी यातनाओं की भर्त्सना के लिए लिखे गए निबन्ध हैं. ये चित्र आपको अचम्भित तो करते ही हैं, साथ ही आपको झकझोरते भी हैं. आपको आवाज़ उठाने के लिए भी मजबूर करते हैं. विश्व-मीडिया में जो बायसनेस है, उसे आईना दिखाते हैं ये चित्र. इन्हें चित्र कहना भी अटपटी विचारधारा का हिस्सा है, ये लगभग तस्वीर होते हुए चित्र हैं. लक्ष्य साफ़ है, कि दुनिया में मौजूद तमाम असल विचारों को उपहासी नज़र से देखना और हमेशा इस कोशिश में रहना कि इक आवाज़ तो हलक से निकले. आप देखिए इन्हें और समझिए कि हम इतने परिपूर्ण होकर भी क्यों अपने में ही दफ्न रह जाते हैं? इस कलाकार से परिचय कराने के लिए विष्णु खरे का शुक्रिया. इन चित्रों को प्रकाशित करने की अनुमति देने के लिए बुद्धू-बक्सा पावेल कुचिंस्की का आभारी.
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1 टिप्पणियाँ:
बुद्धू बक्सा अक्सर चकित कर देता है। धन्यवाद पावेल साहब से परिचय करवाने के लिए।
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