रविवार, 15 अगस्त 2010

गल मिट्ठी-मिट्ठी

आनन-फानन में मैंने डाउनलोड किया था गानों को…. आयशा के गाने.. मुझे नहीं पाता था कि आनन-फानन में किया गया काम भी इतना ख़ूबसूरत हो सकता है. गीतकार हैं जावेद अख्तर और संगीत की कमान है अमित त्रिवेदी के हाथों में…. अरे भाई ये वही अमित त्रिवेदी हैं…. तौबा तेरा जलवा…. इमोशनल अत्याचार … याद आया ना.

तो पहला गाना है..सुनो आयशा.. अगर दसवीं दर्जे के विद्यार्थी की किताबी भाषा में कहूं तो नायक यहाँ नायिका के गुणों का बखान कर रहा है, लेकिन यहाँ भी थोड़ी सी परेशानी है, गीत के बीच में लगता है कि सामने वाला आयशा को उसकी कुछ कमियाँ भी गिना रहा है. ये बात ज़रूर है कि मैं जावेद अख्तर को बहुत अच्छा गीतकार नहीं मानता, लेकिन इतने सरल से शब्दों में खेल दिखा पाना सुन्दर काम है. मसलन…. बातों में हो आ जाती, हो जाती हो जज़्बाती, सोचे समझे बिन कि मोहब्बत की है राह क्या…. गाने के बोल निहायत ही सरल हैं लेकिन ऐसे ही समय पर अमित त्रिवेदी का पता चलता है. हल्की-हल्की महकती आवाज़ है और फ्रेशनेस को जी भरकर गाया गया है. बेहतरीन गाना है…. बॉलीवुड के बाज़ारू संगीत जगत में गिटार को ख़ूबसूरती के साथ इस्तेमाल करना शायद दो ही संगीतकारों….शंकर-एहसान-लॉय और अमित त्रिवेदी को ही आता है, ये बस जल्दी-जल्दी संगीत बस बनाकर निकल जाने वाले लोगों में से नहीं हैं. एक ताज़गी की खनक भी पता चलती है.
 
इस गीत के लिए मैंने एक ही समय चुना है, तड़के सुबह. यहाँ की बीट थोड़ी मिलती-जुलती लगती है दोस्ताना के गीत जाने क्यों दिल जानता है…. से.

अब आते हैं निखिल डिसूज़ा अमित त्रिवेदी के साथ… फ़िर वही सब सुनाई पड़ता है…खुला गिटार, एकदम बिंदास और जो गीत की रौ में अपने लिए एक अलग स्थान बनाते हुए बनाते हुए बह रहा है. गाना है शाम भी कोई जैसे है नदी. समूचा गीत गिटार पर है और कोई भी दूसरा वाद्य यन्त्र नहीं. ये गीत जैसे मुंह बनाता है और सबको यही बताता है कि मुझे मुफलिसी में सुनो तभी शायद पता चलेगा कि मैं क्या चीज़ हूँ या किस हद तक मैं असर करता हूँ. गीत में फ्री हैण्ड गिटार के साथ अकॉस्टिक गिटार भी सुनाई पड़ता है, घुल जाता है जैसे. कानों में पड़ने वाली आवाज़ को कोई भी डर नहीं है, सुर से भटक जाने का या अपने फ्लो में ही फंस जाने का.

तो भई, अब आता है इस फ़िल्म का मास्टरपीस, गल मिट्ठी मिट्ठी बोल….गीत हवाइयन गिटार जैसे से शुरू हो, शहनाई से मिल जाता है और साथ ही तोची रैना अपनी मेटैलिक आवाज़ के साथ मौज़ूद हैं. हाँ, डीजे-वीजे सरीखे गानों की तरह लगता तो ज़रूर है, लेकिन काफ़ी दिन बाद वो भौंडापन नहीं सुनने को मिला, यही कितना अच्छा है तो क्या ये कम है… पंजाबी बोल बड़े सरल हैं लेकिन यहाँ पर फ़िर से वही अमित त्रिवेदी वाला एलिमेंट काम करता है…और धुंआधार करता है. मैं नहीं जानता कि फ़िल्म कैसी है, लेकिन ये गीत ही मेरे हिसाब से फ़िल्म के माहौल को पूरी तरह दिखाता है. सच कहूं तो बाज़ार या ऐसी ही फ़िल्मों के गीतों के नुमाइंदों को मैंने इस गीत पर सिर मटकाते हुए देखा है. मैं मोहित हूँ गीत के बीच में आने वाले ढोल की थाप और साथ की हल्की-फुल्की तालियों पर. उस ढोल का चढ़ना और झटके से ही रुक जाना बड़ा ही ख़ूबसूरत है. दिन के किसी भी समय सुनिए, थकान के बाद आपको एक नयी ताज़गी से भर देने वाला गीत है ये और आवाज़ तेज़ हो तो क्या कहने…. हो सकता है कि घर में डांट सुननी पड़े लेकिन मज़ा तो खूब आएगा. मैं तो अब सभी को चाँद की चूड़ी पहराने की जिद में आ चुका हूँ. बस एक हल्का सा टच मिलता है देव डी के माही मैनू नई करना प्यार… वाले गाने का.

तो बकिया गानों में से भी एकाध अच्छे हैं लेकिन आइये इस फ़िल्म को सुनें और या तो किसी को चाँद की चूड़ी पहरायें या फ़िर मस्त रहें…… बूम बूम बूम बूम पारा.

2 टिप्पणियाँ:

sameer ने कहा…

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

सादर

समीर लाल

manika ने कहा…

very beautiful Ssidhant! First of all i will congratulate to you on the success of your blog and i m very happy to feel and see that your blog still have the same freshness which it had in it’s very first time. Wish you all the best for future