बीच में एकाध बार ये हुआ कि मेरा नाम नाहक़ ही काजोल के साथ जोड़ा गया, तो मेरी आपसे गुज़ारिश है कि ऐसी अफवाहों पर ध्यान ना दें.
यूं तो ऐसा हम सभी के साथ होता है जब किसी नायिका को मन ही मन हम दिल दे बैठते हैं, मेरे साथ भी ऐसा ही होता है और शायद मैं इस क़बूलनामे जैसे कुछ से ये सभी को बताने जा रहा हूँ.

दरअसल, हिन्दी सिनेमा के जिस दौर में हम सब वर्तमान में हैं, वहाँ से अच्छे निर्देशकों की फसल ख़त्म हो चुकी है, जो भी कुछ बचे हैं या जिनसे पहले कुछ उम्मीदें हुआ करती थीं वे भूत-प्रेत, छिछला सा रोमांस और दो टके के सामाजिक विषय जैसे विषयों पर ऊटपटांग सी फिल्में दिन-ब-दिन बनाते जा रहे हैं. गिरिराज किराडू की मानें तो ऐसे निर्देशकों की फसल को एक नाम “करन गोपाल चोपड़ा” दिया जा सकता है. इक्कादुक्का ही निर्देशक अच्छी फ़िल्में बना रहे हैं और शायद इन्ही लोगों से ये आशा की जा सकती है कि किसी अभिनेता या अभिनेत्री को उसके सौन्दर्य की पराकाष्ठा पर ले जाकर दिखा सकें.

जैसे मधुर भंडारकर ने फैशन में किया, मधुर ने प्रियंका चोपड़ा को निहायत ही खूबसूरती के साथ पेश किया. वैसे भी फैशन का विषय ही बड़ा ग्लोरिफाइड है लेकिन फिर भी यहाँ ग्लोरिफिकेशन का सहारा कम से कम लिया गया. तो इस तरह से वहीदा रहमान के बाद मैं मुरीद हुआ प्रियंका चोपड़ा का. यहाँ भी एक गीत है, मर जावां… जिसमें प्रियंका की शीतल और सौम्य खूबसूरती को इस गीत के बैकग्राउंड में रखा गया है. दोस्ताना नामधारी ऊटपटांग फ़िल्म में प्रियंका के अलावा शायद किसी भी किरदार को इतनी बेह्तरीनी के साथ नहीं दिखाया गया है. अगर अदाकारी के बारे में भी थोड़ा सोचा जाये तो प्रियंका के साथ फैशन की कंगना रनौत को भी जोड़ा जा सकता है लेकिन उस एक्सटेंट तक नहीं.
ख़ैर, आख़िर में अपने चेहरे पर अपने बचपन को संजोये हुए एक अभिनेत्री आती है, जेनेलिया डिसूज़ा, जाने तू या जाने ना के पहले कुछ दक्षिण भारतीय फ़िल्मों में काम कर चुकी हैं. चेहरे के मुताबिक़ आवाज़ पाई है, आवाज ऐसी कि सुन कर लगता है कि वह गले में ही कहीं फंस कर रह गयी है. ये एक नयी अभिनेत्री हैं, इन्हें अभी आगे बहुत कुछ करने के लिए बख्श देता हूँ, लेकिन ये मालूम रहे कि मैं इन्हें और प्रियंका को एक ही साथ रखने की जिद में हूँ.
अन्य कई अभिनेत्रियाँ आई, नये में बिपाशा बसु, लारा दत्ता और भी कई…पुरानों में इसी तरह कुछ लेकिन वे सीमाओं को लांघकर ख़ूबसूरत दिखने की चाह रखती हैं/ थीं. ये सब कुछ ऐसा है कि आपको इस पैमाने पर अपने को फिट करने के लिए कहानी और कैमरे की समझ भी होनी चाहिए.