
बयानबाज़ी तो यह है कि बाई ऐन लार्ज, जो कि एक मल्टीनेशनल कम्पनी है, ने पृथ्वी पर कूड़े का अम्बार सा खड़ा कर दिया जिसके विरोध में कई प्राकृतिक शक्तियां खड़ी हो गयी हैं और उन्होंने मज़बूर कर दिया है बची-खुची मानव प्रजाति को धरती छोड़ने के लिए. अपने बचाव में भी मनुष्य आराम-तलब होने के लिए बाई ऐन लार्ज के बनाए ऐक्सियम नामक यान में सवार हो निकल लेता है सुदूर अन्तरिक्ष में और अपनी हड्डियों का द्रव्यमान खोता रहता है साथ में वसा को अधिकाधिक मात्रा और आनुवांशिक रोग के तौर पर संचित करता जाता है.

बहरहाल, ऐक्सियम बिना किसी ख़ास रूचि के अपने जीवन तलाशने वाली रोबोट इवा को भेजता है जो वॉल-ई की तरफ़ से होने वाले इकतरफ़ा प्यार को समझ नहीं पाती है और उसी के द्वारा खोजे जीवन के अंकुर एक पौधे को लेकर डब्बा हो जाती है. फिर वॉल-ई शुरू करता है प्यार को पाने के लिए धरती से आकाश तक का सफ़र (बिलकुल अपनी हिन्दी फ़िल्मों की तरह) और पहुँच जाता है आराम-तलबी के गढ़ ऐक्सियम में.

कप्तान की ऑटो पायलट से लड़ाई एक नाटकीय रोमांच तो पैदा करता है, लेकिन अच्छा है.
रोबोटिक कहानियों पर टर्मिनेटर और ट्रांसफॉर्मर सरीखी कई फ़िल्में बनीं, लेकिन वे गोली, बन्दूक और तकनीक परोसने में ही सीमित रह गयी हैं.
फ़िल्म से जुड़े कई मिश्रित विचार भी मेरे सामने आये और मैं उनसे सहमत नहीं हूँ, क्योंकि मैंने इसे एक अलग पैमाने पर रख कर देखा है. ऐक्सियम/ बाई एन लार्ज को अमेरिका और तमाम विद्रोहियों को ____ माना है, आप ख़ुद ही समझ लें.
फ़िल्म के कुछ स्नैप्स भी चपका रहा हूँ, फ़िल्म देखिएगा ज़रूर, अच्छा लगेगा.
2 टिप्पणियाँ:
अच्छी बात साथ ही अच्छा ब्लॉग भी। बधाई।
देखेंगे!
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