tag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post8735891694099110102..comments2023-06-09T19:20:40.264+05:30Comments on बुद्धू-बक्सा: अवकाश की आकांक्षा में जटिलताएं - अविनाश मिश्रUnknownnoreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-83472052686264583452015-01-28T15:36:18.608+05:302015-01-28T15:36:18.608+05:30जटिलताओं को अवकाश न मिले तो वे और जटिल हो जाती हैं...जटिलताओं को अवकाश न मिले तो वे और जटिल हो जाती हैं, इसी से यहां यह भी ज़ाहिर होता है कि हंसते-खेलते-भागते समारोहों में अनिल यादव की लिखाई की याद भले आये, लिबासों के जादू में उलझना नहीं चाहिये, और निम्फोमैनियाक देखकर दुखी होना ही हो तो उसकी पूंछ की तरह 'विंटर स्लीप' तो कतई नहीं देखी जानी चाहिये. और जब सब दिख चुका हो तो घर लौटकर चुपचाप अंधेरे में फिर पाओलो सौरेंतीनो की 'ला ग्रांदे बेलेत्ज़ा' देखनी चाहिये.<br />azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.com