tag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post7039217946221330066..comments2023-06-09T19:20:40.264+05:30Comments on बुद्धू-बक्सा: समझ लो कि वही ठरकी बुड्ढा हूँ - राजेन्द्र यादवUnknownnoreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-88547252603858733782015-11-04T19:52:24.380+05:302015-11-04T19:52:24.380+05:30जो भी पुरूष ज्यादा फेमिनिज्म करता है उसके साथ यही...जो भी पुरूष ज्यादा फेमिनिज्म करता है उसके साथ यही होता हBHARAT PARASHARhttps://www.blogger.com/profile/07541573511779059668noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-23471722242813597012013-10-16T15:58:48.554+05:302013-10-16T15:58:48.554+05:30प्रतिक्रिया देने के लिए भी कुछ छोड़ना चाहिए।प्रतिक्रिया देने के लिए भी कुछ छोड़ना चाहिए।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/01869247854440558016noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-45025001086202658282013-10-15T23:22:32.592+05:302013-10-15T23:22:32.592+05:30गज़ब लिखा आपने...मुझे लगता है कि ये भारतीय साहित्य...गज़ब लिखा आपने...मुझे लगता है कि ये भारतीय साहित्यिक समाज की समयानुकूल और सार्थक समिक्षा है...वाकई तस्लीमा नसरीन के बाद ऐसी हिम्मत भारत में तो अभी तक देखने मे नही आई थी..<br />आपने लिखने में कोई कसर नही छोड़ी है...पहली बार पढ़ा आपको..और वाकई मुतास्सिर हूँ आपके लेखन कौशल से।राजेन्द्र अवस्थीhttp://harkand.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-52376571252624420472013-10-15T22:25:43.408+05:302013-10-15T22:25:43.408+05:30काफी बेबाकी से इस मुद्दे पर अपनी बात कह दी है। और ...काफी बेबाकी से इस मुद्दे पर अपनी बात कह दी है। और इसमें आक्रामकता और सचाई, दोनों का उपयोग है।कुमार अम्बुजhttps://www.blogger.com/profile/02635510768553914710noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-90988982064964107742013-10-15T19:32:56.764+05:302013-10-15T19:32:56.764+05:30जटिल मामला है.. जटिल मामला है.. Satish Chandra Satyarthihttps://www.blogger.com/profile/09469779125852740541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-4556724890762573132013-10-15T19:27:55.589+05:302013-10-15T19:27:55.589+05:30अनिल जी आपका कायल हुआ। राजेंद्र यादव से पाठकीय परि...अनिल जी आपका कायल हुआ। राजेंद्र यादव से पाठकीय परिचय ही है। कभी लगता था कि जीवन में एक बार राजेंद्र यादव से मिलना है और हंस में अच्छी कहानी के साथ उपस्थिति देनी है। धीरे धीरे ऐसा हुआ कि राजेन्द्र यादव से दूर होता गया। पिछले चार सालों से तीन-चार महीने में एक बार अवश्य दिल्ली से गुज़रता हूँ और सात आठ घंटे यों ही काटकर भी बिना राजेंद्र यादव से मिले चला आता हूँ। उनके कामों के लिए जितनी इज़्जत है उसे ही बचाकर रखना चाहता हूँ। चूँकि बिना साहित्य के अब अपनी कल्पना नहीं कर सकता इसलिए ऐसे दिग्गजों, स्टारों, लेखक निर्माताओं से दूर ही रहा जाये पर अटल होता जा रहा हूँ। रही बात ज्योति कुमारी की तो मैं उनकी बहुत इज़्जत करता हूँ। हम सबको स्त्रियों को मनुष्य का, बराबरी का वास्तविक दर्जा देते हुए उनकी इज्जत करनी ही चाहिए। इस सम्मान के लिए स्वयं को प्रतिबद्ध बनाये रखना चाहिए। उनका आगे अपमान न हो वे एक स्वाधीन और आत्मसम्मान से भरा जीवन जी सकें इसकी कामना करता हूँ। ज्योति कुमारी रिश्तों की सही समझ के साथ लेखकीय जीवन जियेंगी तो अस्मिताओं के लिए संघर्ष के दूसरे द्वार भी अवश्य खुलेंगे। शशिभूषणhttps://www.blogger.com/profile/15611262078016168965noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-65402217117869944632013-10-15T17:44:52.450+05:302013-10-15T17:44:52.450+05:30कड़वा और बेबाक सच... ज्योति पर सवाल उठाते ही तथाकथ...कड़वा और बेबाक सच... ज्योति पर सवाल उठाते ही तथाकथित नारीवादी चढ़ दौड़ेंगे कि इस देश में पीड़ित से ही सवाल पूछने की परंपरा है। लेकिन इस सच्चाई से कौन इनकार करेगा कि ज्योति के अपने बयान में भी कितने विरोधाभास हैं। दूसरे के घर जाकर नहाने का क्या यही स्पष्टीकरण है कि वह घर किसी पिता तुल्य का है? और दफ्तर का काम घर के एकांत में करने का? किसी मूर्ख को भी समझ आ जाएगा इस सब के पीछे की सच्चाई। हां यह आश्चर्य की बात है कि इस पारस्परिक सुविधापूर्ण व्यवस्था से इतर क्या हुआ जो बात घर से बाहर तक आ गई। क्या किसी छोटे आदमी (पद और प्रतिष्ठा में) का भी अपने हिस्से की मांग करना या कुछ और?दीपिका रानीhttps://www.blogger.com/profile/12986060603619371005noreply@blogger.com