tag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post953305320440985411..comments2023-06-09T19:20:40.264+05:30Comments on बुद्धू-बक्सा: मंगलेश डबराल की कविताएँUnknownnoreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-34042404110702557252011-09-23T20:04:00.312+05:302011-09-23T20:04:00.312+05:30सुप्रसिद्ध कवी मंगलेश डबराल जी का शास्त्रीय संगीत ...सुप्रसिद्ध कवी मंगलेश डबराल जी का शास्त्रीय संगीत के रागों का इस तरह विश्लेषण अद्वितीय और अद्भुत है |उनकी कल्पना शीलता का एक शानदार नमूना ...|आश्चर्य की बात है कि इसके पहले ये राग काफी बार सुने हैं विभिन्न आयोजनों में और इनमे से संगीत सीखते हुए गाये भी,लेकिन आज इन कविताओं को पढते वक़्त जब उन रागों को याद कर रहे हैं तो सचमुच जैसे वो इन्ही रूपों में उतरकर सामने खड़े हो गए हैं | ‘’उसमें मिठास है या अवसाद यह इस पर निर्भर है कि सुनते हुए तुम उसमें क्या खोजते हो’’..अद्वितीय ... <br />‘’मारवा संधि-प्रकाश का राग है <br />जब दिन जाता हुआ होता है और रात आती हुई होती है <br />जब दोनों मिलते हैं कुछ देर के लिए <br />वह अंत और आरम्भ के बीच का धुंधलका है <br />जन्म और मृत्यु के मिलने की जगह....|’’<br /><br />’जो राग अपने स्वरुप से इतने सरल होते हैं कि वहां दूसरे रागों का अतिक्रमण हो जाता है ,ये निलंबन के राग हैं ...|लाज़वाब ......धन्यवाद व्योमेश जी अद्भुत कवितायेँ पढवाने के लिएवंदना शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/16964614850887573213noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-51863715183582236292011-09-23T07:20:57.826+05:302011-09-23T07:20:57.826+05:30"आकार पाने के लिए तडपता हुआ अमूर्तन
एक अलौकिक..."आकार पाने के लिए तडपता हुआ अमूर्तन<br />एक अलौकिकता जो मामूली चीज़ों में निवास करना चाहती है"<br /><br />मंगलेश सर ही शायद ऐसी कविता लिख सकते थे. अद्भुत आनन्द.<br /><br />पूजा पाठक,<br />लखनऊ.पूजा पाठकnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-79823430995564648452011-09-22T08:37:14.431+05:302011-09-22T08:37:14.431+05:30ये कुछ ऐसी कवितायेँ हैं जिन्हें और कोई नहीं, यानि ...ये कुछ ऐसी कवितायेँ हैं जिन्हें और कोई नहीं, यानि कोई नहीं लिख सकता था और कोई नहीं लिख सका. मंगलेश ने रागों को जिंदगी और जिंदगी को राग बना दिया है, कई बार पढ़ी जाने वाली कवितायेँ हैं ये...क्या पंक्तियाँ हैं वाह. बहुत दिनों बाद कविता का सुख मिला जो किसी और चीज़ जैसी नहीं कविता जैसा था. बहुत शुक्रियाaddictionofcinemahttps://www.blogger.com/profile/09104872627690609310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-40866961882954292292011-09-22T06:59:33.780+05:302011-09-22T06:59:33.780+05:30आनन्द आ गया,,,,बहुत आभार पढ़वाने का...आनन्द आ गया,,,,बहुत आभार पढ़वाने का...Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com