tag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post720814433523927363..comments2023-06-09T19:20:40.264+05:30Comments on बुद्धू-बक्सा: कुणाल सिंह के संग्रह/ सम्मान पर अविनाश मिश्रUnknownnoreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-25439127273582295672013-02-19T00:52:00.495+05:302013-02-19T00:52:00.495+05:30मेरी किताब को शायद साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने के...मेरी किताब को शायद साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने के लिए ही रोका गया, ऐसा मुझे चंदन पांडेय ने कहा था, और यह मैंने पिछले साल भी पब्लिकली लिखा था। इस लेख में उस मामले का ज़िक्र हुआ है तो पुष्टि कर रहा हूं। गौरव सोलंकीhttps://www.blogger.com/profile/12475237221265153293noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-74579745636716567142013-02-19T00:45:52.948+05:302013-02-19T00:45:52.948+05:30अविनाश, हिंदी कहानी या हिंदी साहित्य का जो अँधेरा ...अविनाश, हिंदी कहानी या हिंदी साहित्य का जो अँधेरा है, इसमें कौन किसको कब से और कितना नोच रहा है, ठीक से किसी को नहीं पता। शब्दों को सब तलकर खा रहे हैं, कहानियां लेखक के जीवन मूल्यों से इतनी अलग हैं कि यह वाक्य,जो मैं लिख रहा हूं, किसी उबाऊ साहित्यिक आलोचना का हिस्सा लगने लगता है।<br /><br />जिनके मित्र और शत्रु ना हों, ऐसे आलोचक मुझे नहीं दिखते। अपवाद हैं जितने हुआ करते हैं। पाठक हैं नहीं, और ये संपादकों,प्रकाशकों और लेखकों ने मिलकर किया है। पहले बुरा लगता था, लेकिन अब ख़ुशी होती है कि यह पाठकों का जवाब है साहित्य को। <br /><br />अब ना पाठक हैं, ना आलोचक कहे जा सकने लायक ज़्यादा आलोचक, तो बस अँधेरा है, जिसमें पुरस्कार हैं, जिन्हें किताब के पिछले इनर कवर पर लिखा जाना है। ऐसी लिजलिजी छोटी सी दुनिया, जिसके बाहर किसी को इन पुरस्कारों का नाम तक नहीं पता, किसे मिला इसकी फ़िक्र तो क्या होगी! ऐसा साहित्यिक समाज, सिर्फ़ जिसके भीतर पुरस्कारों का प्रदर्शन किया जा सकता है और जिसका हर आदमी जानता है कि किसे कौनसे सेठ का, कौनसी पत्रिका, कौनसी अकादमी का पुरस्कार, कैसे मिल रहा है. फिर भी इन पुरस्कारों का इतना मोह किसे दिखाने के लिए? इतनी तिकड़में, बरसों बरस का गिड़गिड़ाना, चापलूसी किसलिए? अपने लिखे के हर मूल्य की आँखों में आँखें डालकर चाकू से उसका गला रेतना बरसों तक. क्यों? पाने के लिए कुछ बड़ा होता तो ये लोग क्या करते? तुमने कभी किसी ऐसे आदमी को देखा है जो ट्रेन के टिकट की लाइन में थोड़ा आगे जाने के लिए रुआंसा चेहरा बनाकर कहता है कि उसके पिता की मृत्यु हो गई है? आगे जाकर टिकट खरीद लेने के बाद लौटते हुए उसके चेहरे की बदसूरत हँसी देखोगे तो शायद हिंदी का लेखक याद आए। उसे लगता है कि वह औरों को बेवकूफ़ बना रहा है। <br /><br />जुगाड़ के ये पुरस्कार, पद और किताबें क्या पॉर्न से ज़रा भी ज़्यादा होती होंगी, जिन्हें देखकर आप अकेले अँधेरे कमरे में भले ही उत्तेजित हो लें, लेकिन Masturbation का शिखर चेहरा उठाकर भी देखेगा तो भी उसे सुकून का शिखर नहीं दिखेगा। तो शायद यह उन लोगों के जीवन का, लिखे का खालीपन है, निरर्थकता है, जिसे भरने के लिए पुरस्कारों के इस नेटवर्क के सब लोग लगातार हस्तमैथुन कर रहे हैं। जो शक्तिशाली हैं, उनके पास इस काम के लिए दूसरे लोग हैं। यही नए लेखकों का पुराना होना है। <br /><br />तुम या दूसरे जो भी लोग इन बातों को दर्ज़ कर रहे हैं, बड़ा काम कर रहे हैं। तुम्हारी कुछ बातों से मेरी असहमति भले ही हो, या इनमें से कुछ बातें हैं, जिनका सच झूठ मुझे नहीं पता। शायद समय बताए। लेकिन तुम हमेशा ऐसे ही कच्चे रहो, यही कामना! वही बोलो, जो तुम्हारा सच हो! गौरव सोलंकीhttps://www.blogger.com/profile/12475237221265153293noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-66017619032255499342013-02-18T13:38:10.240+05:302013-02-18T13:38:10.240+05:30रोचक ! .... युवा कहानी के अँधेरे कमरे की नग्न आकृत...रोचक ! .... युवा कहानी के अँधेरे कमरे की नग्न आकृतियों पर भक्क तीन सेलवा टॉर्च बार दिए आप तो .. एन्ने वोन्ने चद्दर की खींचातानी चलेगी अब .. <br /><br />पर एक बात कहूँगा अविनाश .. केकरो पकडिये तो अकेले घेर कर मारिये .. जैसे पिछली बार किये थे गुरु चेला के साथ .. दू चार गो को एक साथ छेडिएगा तो सब अपना अपना दांत सटाकर एगो बड़का सींग बना लेगा और फिर आपको ही रगेदना शुरू कर देगा .. ;-) <br /><br />शुक्रिया आपको भी सिद्धांत महोदय आपके 'बुद्धू बक्सेपने' के लिए ... shayak alokhttps://www.blogger.com/profile/02820288373213842441noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-39318356295219881042013-02-18T11:12:32.789+05:302013-02-18T11:12:32.789+05:30भाई लेख में वे सभी तत्व हैं जो किसी भी लेख को रुचि...भाई लेख में वे सभी तत्व हैं जो किसी भी लेख को रुचिकर बनाते हैं। मगर आपके लेख से लगता है कि आपको इस बात का बिल्कुल ज्ञान नहीं है कि हिन्दी कहानी अब वैश्विक होती जा रही है और भारत के बाहर भी अच्छी हिन्दी कहानी लिखी जाती है। या तो आपको पढ़ने का समय नहीं मिला या फिर शायद आप भी उसे मुख्यधारा की कहानी के साथ ना रखते हुए उसे प्रवासी कहानी की बैसाखी का सहारा देना चाहते हैं। तेजेन्द्र शर्माhttps://www.blogger.com/profile/15753407163299608362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-18149705502452234312013-02-18T10:01:13.571+05:302013-02-18T10:01:13.571+05:30yo yo kunal singhyo yo kunal singhpravin kumarhttps://www.blogger.com/profile/02586089717472078507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-29417308396786593312013-02-18T03:21:21.755+05:302013-02-18T03:21:21.755+05:30अनिल यादव मेरी जानकारी में दिल्ली में नहीं रहते। ...अनिल यादव मेरी जानकारी में दिल्ली में नहीं रहते। वैसे पूरा आलेख पढ़ने में मजा आया।Avinash Dashttps://www.blogger.com/profile/17920509864269013971noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-48052496809987705642013-02-17T23:50:32.125+05:302013-02-17T23:50:32.125+05:30बहुत अच्छे... यानी दिल्ली में रहनेवालों के लिए भी ...बहुत अच्छे... यानी दिल्ली में रहनेवालों के लिए भी दिल्ली दूर है... साहित्य में गणित का घालमेल बहुत अच्छा विषय है... लेकिन गणित को ही साहित्य बनाना सही नहीं है... हमारे नए कहानीकारों को यह समझना होगा... अन्यथा वे साहित्यकार की जगह गणितज्ञ बन जाएँगे... अपने पुरखों से सीखें तो साहित्य लिखना सीखें, उनके गणितज्ञ रूप से बचें... वैसे भी 'उनके' दिन लद चुके हैं, जो इन युवा रचनाकारों की रचनाशीलता को 'हिसाबी' साहित्य में तब्दील कर रहे हैं... वक्त किसी को नहीं बख़्शता... Hindi Cinemahttps://www.blogger.com/profile/15895664157492585705noreply@blogger.com