tag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post3345202625126422131..comments2023-06-09T19:20:40.264+05:30Comments on बुद्धू-बक्सा: ज्योति कुमारी के कहानी संग्रह पर अविनाश मिश्रUnknownnoreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-29313470491557894252013-04-15T16:17:13.956+05:302013-04-15T16:17:13.956+05:30tumto banane baithe the sanam ka chehra
phir kyu ...tumto banane baithe the sanam ka chehra <br />phir kyu apni tasveer bana di hai miyaa<br />Abhinav Sarkaarnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-11244749176252231152013-04-13T18:10:00.634+05:302013-04-13T18:10:00.634+05:30इतनी निर्ममता अविनाश जी ...!
कहीं-कहीं कटुता असंयत...इतनी निर्ममता अविनाश जी ...!<br />कहीं-कहीं कटुता असंयत सी भी लगी ...पर समीक्षा एक कड़वी दावा सी भी ज़रूर लगी ...<br />जिसके डोज़ जरूरी तो हैं ही ...उपयुक्त भी ...<br /><br />सफलता, पुरस्कार और कम समय में उतना ' उचका जाना' किसी भी लेखक/लेखिका <br />की मंज़िल या नियति नहीं होती ...शास्त्रीय गायन के सिद्ध उस्ताद और पंडित अपने <br />आपको सागर में एक बूँद सा बताते हैं ...साहित्य भी वैसी ही विधा है ...खुद को सींचो <br />और साहित्य का सिंचन करते चलो ... एक प्रवाह अस्खलित बहे, हमारा जीवन उसमें <br />एक पड़ाव सा... जहां विश्व बोध और जनजीवन की वर्तमान दशा और अवदशा का, सुख-दुःख, <br />करूणा व दारूण हालातों का भी लेख-झोखा हो और हो एक भीतरी जीवनदायी सांत्वना ...<br />शिल्प और कलात्मकता, ओज और दर्शन भी रहे कृति में और सुरेख तकनीक का भी हो <br />फ्रेमिंग ...अभी अपने एक संपादकीय में राजेंद्र यादव जी ने इसी संदर्भ में एक स्वीकारात्मक <br />बात लिखी है। वह नई उभरती लेखिकाओं को उनके लेखन के संबंध में लिखते हुए कहते हैं <br />कि, "बहरहाल, ये नई स्त्री अनुभव की ईमानदारी और अभिव्यक्ति की ताज़ा संप्रेषणीयता से <br />जूझने का सफल और असफल प्रयास कर रही है - सवाल यह उठता है कि ज़िंदगी की <br />सच्चाइयां तो यही हैं, मगर उनका ट्रीटमेंट क्या हो कि दुहराव और एकरसता को तोड़ा जा सके. <br />मुझे लगता है कि यहां यथार्थ को अपने ढंग से तोड़ कर कथ्य को प्रभावी बनाया जा सकता है"<br /><br />दो कहानियाँ ही पढ़ी है मैंने ज्योति कुमारी जी की ...पर अविनाश जी ने जैसे कहा 'रीडिंग प्लेजर' <br />कम ही महसूस हुआ ...डायरी और साहित्य सृजन में अंतर तो है ही ...और मन की सारी भडासें <br />शायद ही साहित्यिक कही जाए ...<br /><br />आज की और आने वाली तमाम हिंदी साहित्य की ओवरओल और सुघड़ समालोचना के दायित्व का <br />निर्वाह तुमसे होता रहे अविनाश जी ...जिसकी संभावनाएं हम आप में तो कम से कम देख ही रहे हैं.. <br />क्योंकि यहाँ आपकी पिंजाई बहुत बारीक़ है जो आने वाले समय के भी शुभ लक्षण है ...और युवा <br />लक्षण हैं...<br /><br />ज्योति कुमारी जी की इतनी त्वरित प्रसिद्धि और पोप्युलारिटी को लेकर तुम्हारी कोफ़्त घुटन और <br />चिंताएं भी जायज़ सी लगे ...और तुमने लेखिका पर व्यक्तिगत कारणों से खीज निकाली हो वैसा <br />कहना तुम्हारे साथ नाइंसाफी ही होगी ...GGShaikhhttps://www.blogger.com/profile/02232826611976465613noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-76150850053868324612013-04-13T18:07:04.878+05:302013-04-13T18:07:04.878+05:30Achhi samiksha hai.. Par mujhe do cheezen kahni ha...Achhi samiksha hai.. Par mujhe do cheezen kahni hain. In kachi kahaniyon ko chhapne wali patrika pakhi ko kyun bachaya gaya hai. Kya sirf isliye ki lekhak wahan kam karte hain. Dusra lilli ghodiyon wala roopak durbhavnagrast lagta hai kyunki lilli ghode bhi hamare beech kam nahi hain. सहर्https://www.blogger.com/profile/00635494262870282173noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-28956441035983925452013-04-13T14:43:51.372+05:302013-04-13T14:43:51.372+05:30अफ़सोस हुआ यह देख कर कि नई रचनाकारों के संग्रहों प...अफ़सोस हुआ यह देख कर कि नई रचनाकारों के संग्रहों पर ऐसी 'वैयक्तिक' किस्म की टिप्पिणियाँ भी लिखी जाती हैं, यानी टिप्पणी लेखक के अपने 'वैयक्तिक' कारणों से. लेखक जान बूझ कर साहित्यीक सोच में यदा कदा आते तूफानी परिवर्तनों पर निकृष्ट तरीके से कमेंट कर रहे हैं. कोई समय था कि जैनेंद्र की 'सुनीता' ने और मृदुला गर्ग की 'चित्तकोबरा' ने पुरातान्पन्थ्यों की नींद हराम कर दी थी. अब इस टिप्पणी के लेखक 'शरीफ लड़की' में प्रतिपादित नई सोच की तकनीकी मीमांसा न कर के लेखिका पर 'वैयक्तिक' कारणों से टिप्पणी कर रहे हैं. ऐसा लगता है कि वे विरोध के लिये विरोध कर रहे हैं सो लेखिका की हर बात उन्हें अखरती है. वे तीन बिंदियों पर भी टिप्पणी करते हैं जबकि साहित्य की punctuation में तीन बिंदियाँ सबसे अधिक लोकप्रिय हैं. वे अंग्रेज़ी शब्दों की भरमार की बात कर रहे हैं जबकि मृणाल पांडे ने कब का यह स्थापित भी कर दिया कि अंग्रेज़ी शब्दों के इस्तेमाल में कुछ भी गलत नहीं है. लेखक के सारे तों में एक कट्टर्पंथीपन तो छाया हुआ है पर वे दिल से भी कट्टर हैं ऐसा नहीं है. उन्हें 'वैयक्तिक' कारणों से एक नवागंतुक रचंकर की धज्जियाँ उडानी हैं सो वे असंतुलित तरीके से लिखे जा रहे हैं. वे लेखिका के नाम तक पर टिप्पणी कर रहे हैं. वे संग्रह के नामकरण पर भी कहना ज़रूरी समझते हैं. शरीफ लड़की कहानी में शादी से पहले प्यार, लिव इन, या गर्भपात जैसी नई घटनाओं पर लेखिका की नई दृष्टि के पक्ष या विपक्ष पर कुछ नहीं कह रहे वरन उन्हें किसी कारण विरोध में कुछ न कुछ कहना है, इसलिए कह रहे हैं. इसलिए यह नहीं कि इस संग्रह का प्रकाशन साहित्येतर कारणों से हुआ है बल्कि यह पूरा लेख ही समीक्षेतर कारणों से लिखा गया है. वे यहाँ तक कहते हैं कि अब लेखिका के संभालने की संभावनाएं कम हैं. यह सब अपने आपमें सब कुछ कह डालता है कि लेखिका के प्रति उनकी शुभकामनाएँ हैं या दुष्कामनाएं! क्षमाप्रार्थी - प्रेमचंद सहजवाला Prem Chand Sahajwalahttps://www.blogger.com/profile/16785012663655370640noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-10059642082670050922013-04-13T10:24:34.292+05:302013-04-13T10:24:34.292+05:30हाहाहा....ऐसी समीक्षाओं को होर्डिंग की तरह शहर के ...हाहाहा....ऐसी समीक्षाओं को होर्डिंग की तरह शहर के बीचोंबीच टांग देना चाहिए..दरियागंज में..Nikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-27292554088322883372013-04-13T10:19:04.151+05:302013-04-13T10:19:04.151+05:30कल दिनांक 14/04/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nay...<i><b><br />कल दिनांक 14/04/2013 को आपकी यह पोस्ट <a href="http://nayi-purani-halchal.blogspot.in" rel="nofollow"> http://nayi-purani-halchal.blogspot.in </a> पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .<br />धन्यवाद! </b></i><br />Yashwant R. B. Mathurhttps://www.blogger.com/profile/06997216769306922306noreply@blogger.com