tag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post184549704820218413..comments2023-06-09T19:20:40.264+05:30Comments on बुद्धू-बक्सा: अंत में योग्य सिर्फ़ सत्ता रह जाती है - पंकज चतुर्वेदीUnknownnoreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-78263517757828574432013-05-03T11:27:29.265+05:302013-05-03T11:27:29.265+05:30आदरणीय पंकज जी , मुझे लगता है कि समाचारपत्रों में ...आदरणीय पंकज जी , मुझे लगता है कि समाचारपत्रों में प्रकाशित आपके गंभीर लेख तात्कालिकता के शिकार हो सकते हैं पर आपकी ये कविताएं काफी समय तक हमें उद्वेलित करती रहेंगी. सत्ता और योग्य के बीच का जो सम्बंधित उदघाटित किया है आपने वह सचमुच आँखे खोल देने वाला है. <br />rameshtailang.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-67065660777767071692013-04-02T14:04:59.323+05:302013-04-02T14:04:59.323+05:30आनंद देने वाली कविताऍं। बधाई पंकज। अपने आलोचक के ...आनंद देने वाली कविताऍं। बधाई पंकज। अपने आलोचक के टनो भार से कैसे तुम अपनी कविता को स्लिम और सुंदर बनाए रखते हो। उम्मीद --क्या कहना। अभी भी कविता थोड़े ही शब्दों में निवास करती है---शब्दों की विंध्याटवी में नहीं।ओम निश्चलhttps://www.blogger.com/profile/12809246384286227108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-25983014024235239512013-03-31T13:28:29.857+05:302013-03-31T13:28:29.857+05:30ek saath saral aur jatil, sunder aur marmik!ek saath saral aur jatil, sunder aur marmik!ravindra vyashttps://www.blogger.com/profile/14064584813872136888noreply@blogger.com