tag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post1657009747139272903..comments2023-06-09T19:20:40.264+05:30Comments on बुद्धू-बक्सा: उमाशंकर चौधरी के कविता संग्रह/पुरस्कार पर अविनाश मिश्रUnknownnoreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-18704316676466160982013-04-12T20:56:04.279+05:302013-04-12T20:56:04.279+05:30अविनाश को इसके पहले भी पढ़ चुका हूं.... यह तेवर सम...अविनाश को इसके पहले भी पढ़ चुका हूं.... यह तेवर समकालीन युवाओं में नदारद है...। बहसों से बचने वाले समय में बहस करने का साहस करने वाले अविनाश को मेरी बहुत बधाई...।। यह लड़का भविष्य का एक दमदार आलोचक है.... आमीन..!!!!विमलेश त्रिपाठीhttp://bimleshtripathi.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-67430966539391667682013-04-12T20:43:15.609+05:302013-04-12T20:43:15.609+05:30युवा लेखन आज चाहे-अनचाहे, जाने-अनजाने एक विकट चक्र...युवा लेखन आज चाहे-अनचाहे, जाने-अनजाने एक विकट चक्रव्यूह में घिरा हुआ है. इसकी व्यूह रचना करनेवाले द्रोणाचार्यों, शुक्राचार्यों, दुस्सासनों, दुर्योधनों, जयद्रथों का खेमा मदमस्त है. सच कहने की कठिनाइयों से पार पाना मुश्किल होता जा रहा है. वे मानदण्ड गढ़ रहे हैं- पुरस्कारों, प्रायोजित प्रशंसाओं से, मनमाफिक चुनिन्दा प्रकाशनों से और अक्सर उपेक्षापूर्ण वर्तावों से. जो इन छलनियोजनों को धता बताते हुए अलगाव झेल कर लिखने का संकल्प और साहस करेगा, वही सच कहेगा-लिखेगा. <br />आपमें यह जज्बा दीखता है. मुझे अच्छा लगा. दिगम्बरhttp://vikalpmanch.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-1820101581654390792013-04-12T18:16:10.343+05:302013-04-12T18:16:10.343+05:30इस कविता-संग्रह को सम्मान मिलने पर मैं भी अचम्भित ...इस कविता-संग्रह को सम्मान मिलने पर मैं भी अचम्भित था, लेकिन इस तरह से कह नहीं पाया। जिस समय इस किताब को नवलेखन मिला, उसी समय गौरव सोलंकी ने भी अपनी पांडुलिपि जमा की थी। उनके संग्रह को प्रोत्साहित सूचियों में भी शामिल नहीं किया गया था क्योंकि गौरव तब तक कहीं छपे भी नहीं थे। सम्मान के आगामी वर्ष में उन्हें भी नवलेखन मिला। इससे इतना तो क्लियर हो गया था कि बिना परिचय इस पुरस्कार के जज तो पांडुलिपि पर थूकते भी नहीं होंगे। शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-16858610082712052782013-04-12T18:11:56.614+05:302013-04-12T18:11:56.614+05:30Bebaki se bharpoor aalochana! Avinash ko badhai!
Bebaki se bharpoor aalochana! Avinash ko badhai!<br />Shubhneetnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-28885704759460835782013-02-27T00:42:40.122+05:302013-02-27T00:42:40.122+05:30pustak nhi padhi.. lekin aapki saafgoi aur saahas ...pustak nhi padhi.. lekin aapki saafgoi aur saahas ko salaam karti hun..leenanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-72009250252969207062013-02-18T16:38:40.284+05:302013-02-18T16:38:40.284+05:30woo hoo hoo :)Go Avinash.. *whistles*woo hoo hoo :)Go Avinash.. *whistles*shubham shreehttps://www.blogger.com/profile/02155391506353824820noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-63299823209077700702013-01-22T09:36:54.036+05:302013-01-22T09:36:54.036+05:30उफ़..
हिंदी आलोचना भी पठनीय, विश्वसनीय तो खैर छोड...उफ़.. <br />हिंदी आलोचना भी पठनीय, विश्वसनीय तो खैर छोड़े हीं, हो सकती है का विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहा यह शख्स कौन है? है तो अब तक कहाँ था? <br />उमाशंकर चौधरी की कवितायेँ पढ़ी नहीं अब तक, सो उस पर कोई राय नहीं है, हाँ लेख बहुत 'कन्विंसिंग' है. कथ्य, कथन और तर्क तीनों ही मापदंडों से. Samarhttps://www.blogger.com/profile/02202610726259736704noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-39622474432051113752013-01-21T05:01:07.055+05:302013-01-21T05:01:07.055+05:30मैं अब गांव की वह पाठशाला नहीं जाना चाहता
जहां शिक...मैं अब गांव की वह पाठशाला नहीं जाना चाहता<br />जहां शिक्षक हमें झूठ नहीं बोलना सिखाते हैं<br />मैं चाहता हूं बढ़ई का हुनर सीखना<br />ताकि एक दिन उस मनहूस सांकल को ही हटा सकूं...<br /><br />Galat baat hai aur agar koi aisa likh sikta hai to woh paagale bane ki koshih me hai aur use bheed se alag nikal lena chahiye. Sab mithya hai aur ham likhte hain kyon? Is prashn ka jawaab khojein. <br /><br />Anand Kumar Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/03012759931145541293noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-37589846841110305832013-01-21T02:17:18.544+05:302013-01-21T02:17:18.544+05:30बार-बार एक सवाल मन में उठता रहा है (और जिसका संकेत...बार-बार एक सवाल मन में उठता रहा है (और जिसका संकेत यहां इस चर्चा में भी मौजूद है) कि हमारा हिन्दी साहित्य इतना छुई-मुई और नाजुक क्यों है जो एक ढंग की आलोचना तक बर्दाश्त नहीं कर पाता, जहां रचना पर एक कठोर टिप्पणी दशकों के संबंधों पर भारी पड़ने लगती है। क्यों पुस्तक समीक्षा एक निहायत उबाऊ,प्रायोजित और जड़ किश्म की चीज बन कर रह गयी है जिसे संपादकगण अक्सर एकदम नये हिन्दी छात्रों को पकड़ा देते हैं और वह भी लगभग एक पूर्वनिर्धारित ढांचे में कुछ पंक्तियां उद्धृत कर और अंत में एक दो वाक्य में दबी जुबान में कुछ कमियां बताकर इतिश्री कर लेता है। अविनाश बाबू का यह लेख अस्वस्थ हिन्दी समाज में सुखद बयार की तरह है। भाषा, तर्क, तेवर, साहस और सबसे बढ़कर आद्योपांत मौजूद सकारात्मकता इसे खास बना देती है। अविनाश, अगले लेख की प्रतिक्षा और उस पर नजर रहेगी।प्रमोद कुमार तिवारीnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-29461436837009021722013-01-20T14:26:55.387+05:302013-01-20T14:26:55.387+05:30मेरी सोच को अपने शब्द देने के लिए अविनाश भाई का शु...मेरी सोच को अपने शब्द देने के लिए अविनाश भाई का शुक्रिया ... मैं पिछले 5 बरस में पढ़े गए सबसे वाहियात संकलनों में इसे शीर्ष पर रखा हूँ ...manoj chhabrahttps://www.blogger.com/profile/10273888640315907337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-43586337383135853882013-01-18T21:47:59.002+05:302013-01-18T21:47:59.002+05:30मैं पूरे विश्वास के साथ मानता रहा हूं कि बिना बहस...मैं पूरे विश्वास के साथ मानता रहा हूं कि बिना बहस के कविता मर जाती है। इस लेख में बहस भरपूर मौजूद है...और उसका स्वर बहुत शांत और संयत लेकिन उतना ही धारदार भी है। अविनाश का अपने कहे पर पूरा यक़ीन है, कहीं कोई दुविधा नहीं, संशय नहीं...अब इस तरह के दृश्य कम ही दिखाई देते हैं।<br /><br />कहने में जो कथा है वह भी हिंदी आलोचना में बिलकुल अलग-सी चीज़ है... प्रभाव छोड़ जाने वाली... याद रहने वाली। शिरीष कुमार मौर्यhttps://www.blogger.com/profile/05256525732884716039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-4902278330831852712013-01-18T15:59:16.189+05:302013-01-18T15:59:16.189+05:30उमाशंकर की कविताओं पर मैंने भी लिखा है। यों उस संग...उमाशंकर की कविताओं पर मैंने भी लिखा है। यों उस संग्रह में, बेशक वह बहुपुरस्कृत हो, पॉंच छह अच्छी कविताऍं जरूर हैं। लेकिन शेष का क्षेत्रफल तो बड़ा है,कविता के शिखर उनमें नगण्य हैं या कमतर हैं। अच्छी कविता अपने फैलाव से नहीं, अपने कवित्व से जानी जाती है। हमें यह तो पता होना ही चाहिए कि हमारे हर जीवनानुभव को व्यक्त होने के लिए सुदीर्घ पदरचना की आवश्यकता नहीं है। लिहाजा जिस नैरेटिव का सुघर विन्यास विष्णु खरे ने रचा, वह युवा कवियों के हाथ में पड़ कर एक काव्याभ्यास-भर होकर रह गयी। ऐसी कविताओं की विंध्याटवी में घुसने से भय लगता है और तब अरुण कमल की एक कविता का अंत याद आता है: 'जिसमें इतनी आग थी, उसकी इतनी कम राख !'(यह पंक्ति याददाश्त पर है हो सकता है यह थोड़ी अलग थलग हो, पर आशय यही है) । अविनाश ने लीक से अलग और मैत्री को पीठ दिखाते हुए आलोचना से सच्ची मैत्री का परिचय दिया है। ओम निश्चलhttps://www.blogger.com/profile/12809246384286227108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-52274057702623656832013-01-18T13:00:20.948+05:302013-01-18T13:00:20.948+05:30'शहंशाह ' की ये समीक्षा इसी नाम की पत्रिका...'शहंशाह ' की ये समीक्षा इसी नाम की पत्रिका में २०१० में छपी थी.तुलना के लिए नज़र डाली जा सकती है . http://punarvichar.blogspot.in/2010/01/blog-post.htmlआशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-22754709700073220552013-01-18T08:19:38.184+05:302013-01-18T08:19:38.184+05:30अविनाश मिश्र को फेसबुक पर ही जाना...लेकिन इस लेख क...अविनाश मिश्र को फेसबुक पर ही जाना...लेकिन इस लेख के बाद वह जानना स्थाई हो गया. सहमति-असहमति के आगे सही को सेलीब्रेट और ग़लत पर चुप्पी की अधिकतम संभव ईमानदारी के समकाल में जिस तरह उन्होंने ग़लत को ग़लत कहने का साहस किया है, वह मुझ जैसे को बहुत राहत देता है. और वह भी तब जब यह सब एक प्राणवान गद्य में संभव हुआ है, भरपूर विट से भरा एक ऐसा गद्य जिसमें अनेक मूल्यवान सूक्तियाँ हैं, प्रस्थापनाएं हैं और अनुपम प्रवाह. आलोचना के लगातार शुष्क और प्राणहीन होते चले जा रहे परिवेश में इस स्वर का स्वागत करता हूँ.Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-52903911316461821212013-01-18T01:12:32.447+05:302013-01-18T01:12:32.447+05:30इतनी आत्मीय और बेबाक आलोचना दुर्लभ है जो इस बात का...इतनी आत्मीय और बेबाक आलोचना दुर्लभ है जो इस बात का एहसास ही नहीं होने देता कि किसी के कपड़े उतारे जा रहें है. बधाईअमितेशhttps://www.blogger.com/profile/06585018233300475736noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-4030068371961805602013-01-18T00:16:25.732+05:302013-01-18T00:16:25.732+05:30सिद्धांत,ये अविनाश कौन है भाई। क्या साहस और तेजस्व...सिद्धांत,ये अविनाश कौन है भाई। क्या साहस और तेजस्विता पाई है इस युवा तुर्क ने!आफ़रीन!आफ़रीन!!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/08572611443817710195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-45374793351509854452013-01-17T22:11:31.909+05:302013-01-17T22:11:31.909+05:30अद्वितीय शैली में लिखी गद्यात्मक टिप्पणी !धारदार औ...अद्वितीय शैली में लिखी गद्यात्मक टिप्पणी !धारदार और बेबाक !अविनाश मिश्र को बधाई !अरुण अवधhttps://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-47947143883594304112013-01-17T21:56:07.947+05:302013-01-17T21:56:07.947+05:30क्या साफगोई ..क्या बयान .. ! गले से धड़ा आपने '...<br />क्या साफगोई ..क्या बयान .. ! गले से धड़ा आपने 'कविताखोरी' के पूरे जोड़-तोड़-गणित को ... मुझे किसी लेखिका ने इनकी कविताओं और पुरस्कार पर लगभग ऐसी ही प्रतिक्रिया दी थी तो मैंने उसे उन लेखिका का मेरे प्रति स्नेह और पूर्वाग्रह मान लिया था .. शुक्रिया shayak alokhttps://www.blogger.com/profile/02820288373213842441noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-834252060077814479.post-48232747171677139922013-01-17T21:28:34.013+05:302013-01-17T21:28:34.013+05:30समकालीन कविता पर इतना शार्प, इतना बेधक, इतना साहसी...समकालीन कविता पर इतना शार्प, इतना बेधक, इतना साहसी और इतना बेहतरीन गद्य मैंने नहीं पढ़ा. असल अवाँ गार्द. शुभकामनाएं. girirajkhttp://www.pratilipi.innoreply@blogger.com