गुरुवार, 4 जून 2015

मोनिका कुमार की नई कविताएं


[मोनिका कुमार की कविताएं एक लम्बे वक़्त के बाद सामने आ रही हैं. हिंदी में रचने के झमेले रचनाओं से ज़्यादा हैं. मसलन, आपको एसबुक-फेसबुक जैसी पगलहटों से प्रेरणा मिलती है और कोई भी तीन-चार अपना एक रचनात्मक संसार बसा लेते हैं. ऐसे में इन सब चीज़ों से दूर भागकर लिख-पढ़ रही मोनिका कुमार की कविताओं को देखकर सुकून होता है और इसके प्रति आश्वासन मिलता है कि कविता का स्त्रीवादी स्वर अपने ढर्रे से दूर जा रहा है. कवियों से यह आशा करना लाज़िम है कि उनकी कविताएं जन के ज़्यादा करीब हों. बावजूद इसके, हमें नहीं याद कि हिंदी की किस कविता में यह बात की गयी हो कि कवि सुन्दर कब दिखता है? बुद्धू-बक्सा पर मोनिका कुमार का स्वागत. हम उनके और 'पाखी' पत्रिका के प्रति आभारी.]



खाली पीरियड, इतवार को दिखाता...पहिये को स्लो करता शनिवार

[ 1 ]

इधर तुरपाई उधड़ी नहीं
उधर साड़ी की चुन्नटें पांव में फंसी नहीं
किताबों के वजन से बस्ता फटा नहीं
यह मिल जाती है
या कहिए बस निकल आती है कहीं से भी

मुझे सेफ्टी पिन की तत्परता ने अभिभूत रखा
मैं ऐसे छोटे दिखने वाले
लेकिन महत्वपूर्ण अविष्कारों की पृष्ठभूमि में पैदा हुई
जिनकी सहायता से हम तुरंत मुस्कुराने लायक हो जाते हैं

मैं नहीं कह सकती
मुझे भेज दिया गया एक ऐसी दुनिया में
जिसका कोई सिर-पैर नहीं 

नहीं पता मेरे मरते-मरते
यह दुनिया कैसी हो जाएगी
पर क्या यह ऐसी भी हो सकती है
कि
तुरपाई उधड़ने
चुन्नटें उलझने
और बस्ते फटने
जैसे दुःख
रहेंगे ही नहीं


[ 2 ]
बहुत पुरानी बात है
जब वह बूढ़ी हुई थी...

उसके बैग में कई कार्ड हैं
जिन्हें दिखाने से वरिष्ठ नागरिकों को
जमा पैसों पर अधिक ब्याज मिलता है
सरकारी बसों में किराया आधा लगता है
जाहिर है वह बौखला जाएगी
ये कार्ड खोने नहीं चाहिए 

सर्दियों में पालक और गाजर बीजते हुए
आंगन के आम पर दवा छिड़कते हुए
उसे यकीन रहता कि दुनिया का बस एक नियम है
मेहनत करो, फल पाओ

उंगलियों की वर्जिश के लिए
वह फर्नीचर को मलमल के कपड़े से पोंछती

माली उससे चाय की उम्मीद नहीं करते 
भिखारी गर्म कपड़े की
बच्चे गुमराह हुई गेंद वापिस लेने की    
वह इतनी बूढ़ी हो चुकी है
कि करुणा से उसका भरोसा उठ चुका है

वह समय पर दवाइयां लेती है
दवा की अवसान तिथि जांचने के बाद 
अस्पताल में चेक-अप करवाती है
किसी शोकसभा में नहीं जाती
पार्क में बैठी पड़ोसनों के साथ गपशप नहीं करती
उसे किसी और का जीवन इतना दिलचस्प नहीं लगता
चुगली के रूप में जिससे ईर्ष्या की जाए

दुनिया को उसने अपने सामने से हटा दिया था
जैसे साहिर ने उम्मीद की थी अपने एक चर्चित गीत में

दुनिया का भारीपन
घर के अंदर आसानी से नहीं दाखिल हो सकता था
वह हल्का कागज होकर सुबह घर आता
जिसे वह हाथों-हाथ लेकर
चाय के साथ
दो घंटे सुबह
और शाम को
नियमित लेती थी
अनिद्रा की रातों में
आधी रात को भी पन्ने पलट लेती 
और पढ़ते-पढ़ते ऊंघने लगती

 

[ 3 ]

कवि नहीं दिखते सबसे सुंदर
मग्न मुद्राओं में
लिखते हुए सेल्फ पोट्रेट पर कविताएं
स्टडी टेबलों पर
बतियाते हुए प्रेमिका से
गाते हुए शौर्यगीत
करते हुए तानाशाहों पर तंज
सोचते हुए फूलों पर कविताएं

वे सबसे सुंदर दिखते हैं
जब वे बात करते हैं
अपने प्रिय कवियों के बारे में

प्रिय कवियों की बात करते हुए
उनके बारे में लिखते हुए
दमक जाता हैं उनका चेहरा
फूटता है चश्मा आंखों में
हथेलियां घूमती हुईं
उंगलियों को उम्मीद की तरह उठाए
वही क्षण है
जब लगता है
कवि अनाथ नहीं हैं